प्राचीन काल में स्यमंतक मणि एक दिव्य मणि थी जिसे भगवान सूर्य ने राजा सत्यजित को दिया था

प्राचीन काल में स्यमंतक मणि एक दिव्य मणि थी जिसे भगवान सूर्य ने राजा सत्यजित को दिया था

*प्राचीन काल में स्यमंतक मणि एक दिव्य मणि थी जिसे भगवान सूर्य ने राजा सत्यजित को दिया था।*

 

यह मणि अपने पास रखने वाले को अपार धन और समृद्धि प्रदान करती थी। लेकिन यह मणि अत्यंत दुर्लभ और आकर्षक होने के कारण विवादों का कारण भी बनी। एक दिन राजा सत्यजित ने मणि अपने भाई प्रसेन को दी, और प्रसेन उसे पहनकर जंगल में शिकार के लिए गया।

 

जंगल में शिकार करते समय, प्रसेन का सामना एक विशाल और शक्तिशाली शेर से हुआ। शेर ने प्रसेन को मार डाला और स्यमंतक मणि अपने पास रख ली। जब शेर मणि को लेकर अपनी गुफा में गया, तो वहां जामवंत, जो त्रेता युग के अमर ऋक्षराज और भगवान राम के भक्त थे, ने शेर को देखा।

 

जामवंत को मणि की दिव्यता का आभास हुआ। उन्होंने शेर को मार डाला और स्यमंतक मणि अपने पास रख ली। जामवंत ने मणि को अपनी गुफा में सुरक्षित रखा, क्योंकि वे इसे अपनी पुत्री जामवंती के लिए उपयुक्त वर ढूंढने के उद्देश्य से अपने पास रखना चाहते थे।

 

इधर, जब प्रसेन जंगल से वापस नहीं लौटा, तो नगर में अफवाह फैल गई कि श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि चुरा ली है। लोग कहने लगे कि श्रीकृष्ण ने लोभवश प्रसेन को मारकर मणि हड़प ली। इन आरोपों से व्यथित होकर श्रीकृष्ण ने सत्य का पता लगाने का निश्चय किया। वे जंगल में गए और प्रसेन के शव को खोज निकाला। शव के पास शेर के पंजों के निशान थे। श्रीकृष्ण ने उन निशानों का पीछा किया और शेर की गुफा तक पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि शेर मारा जा चुका था और उसकी गुफा से पैरों के और निशान जा रहे थे।

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श्रीकृष्ण उन निशानों को देखते हुए जामवंत की गुफा तक पहुंचे। गुफा में उन्होंने जामवंत को मणि के साथ देखा और मणि वापस मांगी। लेकिन जामवंत ने मणि देने से इंकार कर दिया। उनका मानना था कि यह मणि उनकी मेहनत से प्राप्त की गई है, और उन्होंने इसे किसी को देने का कोई कारण नहीं देखा।

 

श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध 28 दिनों तक चला। दोनों योद्धा अत्यंत शक्तिशाली थे। श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन किया, तो जामवंत ने अपनी अमरता और अद्वितीय युद्ध कौशल का।

 

28 दिनों के लगातार संघर्ष के बाद, जामवंत ने महसूस किया कि जिस योद्धा से वे लड़ रहे हैं, वह कोई साधारण मानव नहीं है। उन्हें भगवान राम का स्मरण हुआ, जिनकी वे त्रेता युग में सेवा कर चुके थे। जामवंत ने श्रीकृष्ण में भगवान राम का रूप देखा। उन्होंने तुरंत अपनी भूल समझी और श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़े।

 

उन्होंने स्यमंतक मणि श्रीकृष्ण को समर्पित कर दी और क्षमा मांगते हुए कहा, “हे प्रभु, यह मणि आपकी है। मेरी पुत्री जामवंती को अपना जीवनसाथी बनाकर मुझे कृतार्थ करें।” श्रीकृष्ण ने जामवंत की प्रार्थना स्वीकार की और जामवंती से विवाह किया।

 

इसके बाद, श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि को लेकर द्वारका लौटने का निश्चय किया। उन्होंने मणि को राजा सत्यजित को लौटा दिया और इस प्रकार अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों को समाप्त किया।

 

इस घटना ने यह सिद्ध किया कि सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। जामवंत और श्रीकृष्ण का यह युद्ध न केवल दो महान योद्धाओं की शक्ति का प्रदर्शन था, बल्कि यह भी दिखाता है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से भगवान को पहचाना जा सकता है।