एक समय था जब देशी घी गरम किया जाता था

एक समय था जब देशी घी गरम किया जाता था

एक समय था जब देशी घी गरम किया जाता था या बनाया जाता था तो आसपास के 3-4 घरों तक उसकी महक फैल जाती थी। इतनी सुंदर महक होती थी कि पूरा मन व मस्तिष्क सब मदमस्त हो जाते थे। ❤️

 

जिस पात्र में घी रखा जाता था, मात्र वही खुल जाए तब भी आसपास के वातावरण में घी की सुंदर महक फैल जाती थी।

 

लेकिन आज कितने भी अच्छे Brand का घी लाओ, कोई महक नहीं आती। यहाँ तक कि उसमें नाक भी घुसा लो तब भी वह महक नहीं मिलती जो आज के 20 से 30 वर्ष पहले मिलती थी।

 

कितना मिलावट हम खाते हैं, यह सोचने वाली बात है। गाँवों में भी यही स्थिति हो गयी है, शुद्ध घी बनाने पर भी वह महक नहीं मिल पाती जो पहले होती थी। 😐

 

कारण एकमात्र यही है कि पहले गायों को चराया जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति ग्रहण करती थी, वह भी बिना Insecticides, Pesticides, रासायनिक खाद से युक्त होती थी।

 

जो भी होता था शुद्ध ग्रहण करती थी। जितना भी वनस्पति या औषधि खाती या चरती थी, वह सब दूध में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा बन कर व्याप्त हो जाती थी। पूरा दूध ही औषधि युक्त होता था। 🐂🐄

 

तब तो दूध भी Oxytocin Injection घोंप कर जबरदस्ती नहीं निकाला जाता था। ☹️

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लेकिन आज ठीक इसके विपरीत है, अब तो दूध में कोई औषधीय गुण ही नहीं बचा। ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन से जबरदस्ती निकाले हुए इंसेक्टिसाइड, पेस्टीसाइड, रासायनिक खाद से पोषित वनस्पतियों से बने दूध का हश्र धीरे-धीरे धीमे जहर में बदलता जा रहा है।

 

अरे आजकल तो दही तक रसायन डालकर बनाया जाता है, जो पहले जामन से बनाया जाता था जो बिल्कुल जैविक और प्राकृतिक पद्धति से बनता था। 🤷‍♂️

 

धनिया व पुदीना अगर घर में आ जाता था तो पूरा घर महकता था। लेकिन आज… 🥺

 

चने का साग इतना खट्टा होता था कि चटकारे लगा कर खाया जाता था लेकिन अब… 🥺

 

बहुत दुख होता है कि हम कहाँ से कहाँ आ गए। और हैरानी की बात यह है कि इसी को हम क्रमिक विकास (Development) और आधुनिकता (Modernisation) का नाम देते हैं।

 

हवा, पानी, जल, नदी, झरना, वनस्पति, आकाश, मिटी इत्यादि कोई एक भी ऐसा तत्व बता दें जिसको हमने ज़हर न बना दिया हो।

 

हमने विनाश का दरवाजा स्वयं खोल दिया है। लेकिन यही तथाकथित विकास है और आधुनिकता की सीढ़ी है।

 

पछतायेगा… पछतायेगा, फिर गया समय नहीं आएगा 😔🤷‍♂️