बासमती के लिए प्रसिद्ध सहारनपुर में धान की बुआई बड़े पैमाने पर शुरू, रकबा घटा तो उड़द की दाल की ओर बढ़ा किसानों का रूझान, गंगोह उड़द की एशिया की सबसे बड़ी मंड़ी के रूप में विकसित

बासमती के लिए प्रसिद्ध सहारनपुर में धान की बुआई बड़े पैमाने पर शुरू, रकबा घटा तो उड़द की दाल की ओर बढ़ा किसानों का रूझान, गंगोह उड़द की एशिया की सबसे बड़ी मंड़ी के रूप में विकसित

बासमती के लिए प्रसिद्ध सहारनपुर में धान की बुआई बड़े पैमाने पर शुरू, रकबा घटा तो उड़द की दाल की ओर बढ़ा किसानों का रूझान,

गंगोह उड़द की एशिया की सबसे बड़ी मंड़ी के रूप में विकसित

 

 

 

(गौरव सिंघल)

 

सहारनपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खेतीबाड़ी पड़ोसी राज्य हरियाणा और पंजाब से बराबर की होड़ में शामिल है। सहारनपुर लाला कोंडा (गन्ने की उन्नत किस्म) और खुशबूदार और स्वादिष्ट बासमती गेहूं और आम, लीची जैसे फलों के लिए मशहूर है लेकिन पिछले तीन-चार वर्षों के दौरान जैव विविधता के कारण खेतीबाड़ी में बहुत परिवर्तन हुए हैं। धान की खेती के रकबे में पांच हजार हेक्टेयर की कमी हुई है।

 

जिला कृषि अधिकारी कपिल कुमार ने बताया कि पहले पचास हजार हेक्टेयर में धान की खेती होती थी जो घटकर 45 हजार हेक्टेयर रह गई है। इसकी जगह मक्का और उड़द की खेती ने ले ली है। उन्होंने बताया कि यहां के किसानों का रूझान स्वीट कोर्न और बेबी कोर्न की ओर बढ़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि सहारनपुर में धान की खेती का रकबा घटने की वजह पानी की कम उपलब्धता होना है। जनपद के बहुत से इलाकों की मिट्टी की पानी को धारण करने की क्षमता कम हो जाने से वहां धान की उत्पादकता कम हो गई थी। उन्होंने कहा कि पहले यहां बासमती पूसा-1509

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बोई जाती थी। लेकिन अब कम पानी में ही उतनी ही उत्पादकता वाली पूसा-1847 प्रजाति बोई जा रही है। इस नई प्रजाति की दो खूबियां हैं- फसल कम समय में तैयार हो जाती है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होने से फसल रोगग्रस्त नहीं होती। जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि सहारनपुर जिले में बड़ा बदलाव यह आया है कि किसान उड़द की खेती को अपना रहे हैं। जिले में साढ़े चार हजार हेक्टेयर रकबे में उड़द की खेती हो रही है और दो-तीन साल के भीतर ही उड़द की उन्नत और अच्छी किस्म के कारण सहारनपुर का गंगोह क्षेत्र एशिया की सबसे बड़ी मंड़ी के रूप में विकसित हो गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डा. आईके कुशवाहा ने बताया कि उड़द को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। बरसात में फसल को पानी के नुकसान से बचाने के लिए खेतों में मेढ़ बनाकर उड़द की बुआई करना बेहतर उपाय है। उन्होंने बताया कि स्मार्ट तरीका अपनाकर कम लागत में यहां के उड़द उत्पादक किसान अच्छी पैदावार हासिल कर रहे हैं। उड़द की पैदावार के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट और रेतीली मिट्टी उपयुक्त है। डा. अरूण कुमार पंद्रह बीघा में देशी उड़द की सफल खेती कर रहे हैं।