देवबंद : भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म में एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली स्तोत्र माना जाता है,

देवबंद : भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म में एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली स्तोत्र माना जाता है,

देवबंद : भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म में एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली स्तोत्र माना जाता है, जिसका नियमित पाठ करने से विघ्न और बाधाएं दूर होती है : आचार्य अरुण सागर जी महाराज

 

(गौरव सिंघल)

देवबंद (सहारनपुर)।

आचार्य श्री 108 अरुण सागर जी महाराज के मार्गदर्शन में चल रहे 48 दिवसीय भक्तांमर महामंडल विधान के छठे दिन अजय कुमार, डॉ. पारस जैन द्वारा श्री जी की शांतिधारा कर विधि- विधान से भक्तांमर महामंडल विधान कराया गया। महाराज श्री अरुण सागर जी ने अपने प्रवचन में अल्प- श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम , त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम। यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति ,तच्चाम-चारु-कलिका-निकरैक-हेतुः।।

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भक्तांमर स्रोत के इस छठें काव्य को पढ़कर इसके महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि यह श्लोक भक्त की भगवान के प्रति अगाध भक्ति और विनम्रता को दर्शाता है। भक्त यह स्वीकार करता है कि उसके पास ज्ञान की कमी है, लेकिन भगवान की भक्ति उसे बोलने की शक्ति प्रदान करती है। यह श्लोक यह भी दर्शाता है कि कोयल की मधुर आवाज आम के मंजरियों के कारण होती है, उसी प्रकार भक्त की वाणी भगवान की भक्ति के कारण मधुर और प्रभावशाली होती है। यह श्लोक भक्तामर स्तोत्र के 6 वें श्लोक का हिस्सा है, जिसे आचार्य मानतुंग ने भगवान आदिनाथ की स्तुति में रचा था। भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म में एक प्रसिद्ध और शक्तिशाली स्तोत्र माना जाता है, जिसका नियमित पाठ करने से विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं। इस विधान में अर्चना जैन ,चंदन जैन, शिल्पी जैन, सविता जैन, मोना जैन, आस्था जैन, नीतू जैन, अनुज जैन,सुदेश जैन,अभिषेक जैन, अजय जैन, प्रदीप जैन, रविंद्र जैन, मनोज जैन, विनय जैन सहित सकल जैन समाज उपस्थित रहे।