उपेक्षित दादा -दादी और पुश्तैनी हवेली
उपेक्षित दादा -दादी और पुश्तैनी हवेली

लघुकथा 💛💛
उपेक्षित दादा -दादी और पुश्तैनी हवेली
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यह घर मेरा है देखो ना कितना सुंदर है!
हां विभु घर सचमुच बहुत सुंदर है। लगता है तुम्हारा पुश्तैनी घर है
हां यह हमारी “पुश्तैनी हवेली” है मेरे ‘पापा का घर’ मेरे पापा ने मुझे दिया है इसके साथ मेरे बचपन की बहुत सारी यादें जुड़ी हैं। आओ तुम्हें पूरा घर दिखाता हूं दोनों घर देखने चले गए, घर सचमुच बहुत सुंदर और बड़ा था घर को सुंदर तरीके और खूबसूरत सामान से सजाया गया था। कुछ तस्वीरें उसने देखा कि हर कमरे में लगी हुई है जो एक नव युवक की थी। श्रेयांश ने विभु से पूछा वैभव यह तस्वीर किसकी है वैभव अचंभित सा बोला क्या तुम नहीं जानते इनके बारे में श्रेयांश बोला नहीं बिल्कुल नहीं मैं भला कैसे जान सकता हूं! मैं इस घर में पहली बार आया हूं चल झूठें तू तो बचपन में भी तो आया है ना हां बचपन में आया हूं लेकिन मेरे याद कहां है बचपन की बहुत धुंधली सी यादें हैं।
वैभव ने तस्वीर के बारे में कुछ नहीं बताया था अब वह दोनों जाकर बरामदें मैं लगे झूले में बैठ गए घर के बाहर इतना सुंदर लोन था कि ठंडी हवा बरामदे में पूरी तरह आ रही थी। किसी पंखे को चलाने कोई आवश्यकता नहीं थी
ताजी और शीतल हवा में दोनों झूले का आनंद ले रहे थे।
इतने में उनके लिए चाय और पकौड़े आ गए। विभु की मम्मी ने एक तख्त रुपी मेज पर ट्रे रखते हुए कहा आओ दोनों बैठकर पहले चाय पी लो उसके बाद बातें कर लेना। श्रेयांश अभी तो यहां रुकोगे ना बेटा विभु की मम्मी ने श्रेयांश से प्रश्न किया, श्रेयांश कुछ कहता कि उससे पहले ही विभु बोला बिल्कुल मम्मी क्यों नहीं रुकेगा मैं कहीं नहीं जाने दूंगा इसे कम से कम एक हफ्ता हमारे साथ रहेगा। श्रेयांश भाई कहां रह सकता हूं मैं तो शाम को ही निकल रहा हूं । पागल है तू! क्यों जा रहा है शाम को अरे मेरे दादा दादी आ रहे हैं बहुत दिन बाद मेरे यहां रहने के लिए मैं तो बहुत एक्साइटेड हूं उनके साथ रहने के लिए हर साल मुझे छुट्टियों में उनके साथ रहने का मौका मिलता है वरना तो पूरे साल तो मैं उनसे दूर ही रहता हूं। हद है यार दादा दादी के लिए तू दोस्त के साथ रहना नहीं चाहता। क्यों नहीं रहना चाहता तुझसे मिलने के लिए ही तो मैं इतनी दूर से यहां आया हूं वरना क्यों आता बहुत दिन से मन था कि तेरे साथ आकर रहूं बचपन की यादें धूमिल हो रही थी यह तो सोशल मीडिया है जिसने हम दोनों को फिर से दोस्त बना दिया वरना शायद बचपन का यह दोस्त खो ही जाता। बचपन के कुछ पल याद आए और हंसकर दोनों लोट-पोट हो गए । विभु जरा सुनो तो बेटा यह आवाज एक नहीं कम से कम चार बार श्रेयांश के कानों में आयी लेकिन वैभव के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी श्रेयांश ने देखा तो पीछे के कमरे से यह आवाज आ रही थी। श्रेयांश देखो ना तुम्हें कोई पुकार रहा है अरे छोड़ो कोई नहीं है यह तो ऐसे ही है इन्हें और कुछ काम नहीं है हर समय मुझे आवाज ही देते रहते हैं इन्हें कोई एक बार दिख जाए तो बस।अरे पर है कौन क्या बताऊं मेरे दादा-दादी हैं बूढ़े हो गए हैं लेकिन इनकी आदतें अभी भी बच्चों वाली है।अरे तुम्हारे दादा दादी तुमने मिलवाया क्यों नहीं है क्या यार ऐसे ही तुम भी वह तुम्हारे दादा-दादी की तरह समझदार नहीं है एकदम बिल्कुल पागलों की सी हरकत करते हैं। ऐसा क्यों कह रहे हो? और क्या कहूं सारा दिन मेरी मम्मी को खरी खोटी सुनाते रहते हैं अगर हमारे मामा साथ ना देते तो यह तो हम दोनों को पागल ही कर देते। वो तो हमने मेरी छोटी बहन को वेकेशन मैं मामा के घर भेजा हुआ है वरना उसकी तो इतनी बुरी हालत करते हैं कि उसे ऐसी बातें सीखाते बताते हैं कि वह कई दिन तक उनके पास से हटना ही नहीं चाहती मम्मी और मुझसे भी ठीक से बात नहीं करती है। ऐसा क्यों है अब श्रेयांश की जिज्ञासा जानने के लिए बढ़ने लगी थी। अब वह यकायक खड़ा हुआ और उसने चलने की बात कही। अरे रुक ना यार शाम तक तो रुक ! नहीं मुझे देर हो जाएंगी चल एक बार दादा दादी से भी मिलवा दे। उनके चेहरे भी बहुत धुंधले _धुंधले से ही याद है मुझे। वैभव कुछ बोलता है इससे पहले ही श्रेयांश खुद ही उसे कमरे की तरफ चलने लगा विभु पीछे से कुछ बोल रहा था लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और वह कमरे के अंदर घुस गया।
कमरे के अंदर एक आरामदायक कुर्सी पर एक बुजुर्ग बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर बहुत ही मार्मिक भाव थे उन्होंने अपनी आंखें बंद की हुई थी और आरामदायक कुर्सी पर अधलेटे से बैठे हुए थे और पलंग पर उन्हीं की उम्र की एक स्त्री बैठी हुई थी
जो श्रेयांश देखकर अचानक सहम सी गयी ।
श्रेयांश ने उनके पैरों को छूकर प्रणाम किया,तब तक बुजुर्ग की भी आंखें खुल गयी प्रणाम दादाजी कहते हुए श्रेयांश उनके पैर छूने लगा, अरे जीते रहो बेटा खूब ख़ुश रहो। बुजुर्ग दंपति ने एक साथ आशीर्वाद दिया।
वह कुछ पूछते इससे पहले ही श्रेयांश बोला मैं वैभव का दोस्त हूं
मैं बचपन में यही रहा करता था अपने मां के घर में, वो लाल कोठी वाला घर मेरे मामा का ही है। फिर मेरे मामा बाहर रहने चले गए तो मैं भी उनके साथ चला गया था। अरे अच्छा -अच्छा तुम वो आनंद की बेटी के बेटे हो! हां जी कैसे है सब घर में सब बिल्कुल बढ़िया है दादा जी मामा के यहां भी और हमारे घर में भी।
क्या तुम्हारे नाना नानी, मामा मामी कोई और भी आया है तुम्हारे साथ गांव में, नहीं दादाजी मैं अकेला ही आया हूं वैभव से और आप सब से मिलनें। विभु जानता है तुम्हें, जी दादा जी हम दोनों सोशल मीडिया पर फ्रेंड्स बने थे। एक दूसरे से जान पहचान हुई तो मैं उसे अक्सर गांव के बारे में पूछता रहता था मुझे ननिहाल की बहुत याद आती थी क्योंकि मैं बचपन में यहां रहता था लेकिन जब नाना नानी घर छोड़कर चले गए तो मैं यहां किसके पास आता
वहीं जब विभु से मेरी दोस्ती हो गयी तो मैं फिर से ननिहाल की मिट्टी पर आ पाया हूं। श्रेयांश की सभी बातें विभु भी दरवाजे पर खड़ा हुआ सुन रहा था। विभु पर दादी की नजर पड़ी तो दादी ने कहा अंदर आ जाओ विभु लेकिन उसने नजरअंदाज कर दिया फिर दादा जी ने कहा तब भी वह अंदर नहीं आया ।
तभी बाहर से विभु की मम्मी ने आवाज लगायी आ जाओ बच्चों मैं तुम्हारे लिए आम लेकर आयी हूं आम खा लो। मम्मी की एक आवाज पर विभु ने श्रेयांश से आम खाने के लिए कहा, श्रेयांश ने कहा मेरा बिल्कुल भी मन नहीं है अभी पकौड़े इतने ज्यादा खा
लिए हैं कि मेरा अब कुछ भी खाने का मन नहीं है। अब तो बस में निकलूंगा।
तभी दादा दादी दोनों एक स्वर में बोले नहीं बेटा आज तुम बिल्कुल नहीं जाओगे आज तुम हमारे साथ ही रहोगें। नहीं दादी जी मैं नहीं रुक सकता मेरे दादा दादी मेरे चाचा जी के साथ दूसरे शहर में रहते हैं और हमारे पास केवल गर्मियों में ही आते हैं और मैं बिल्कुल नहीं चाहता कि मैं एक दिन भी मिस करूं ।
अरे वाह यह तो बहुत अच्छी बात हैं। आज के समय में भी तुम अपने दादा-दादी से इतना प्यार करते हो। इसमें क्या बड़ी बात है दादा दादी बहुत प्यारे हैं।
इन फैक्ट जो जिंदगी हम जी रहे हैं वह दादा-दादी की बदौलत ही है अगर दादा दादी ने पापा को इतना अच्छा ना पढ़ाया लिखाया होता तो पापा इतनी अच्छी जॉब में ना होते और हम इतनी शानदार जिंदगी ना जी पाते, सही कह रहे हो बेटा अपने बच्चे अगर कामयाब हो जाए तो माता-पिता से ज्यादा ख़ुशी किसे होती है। हम तो अभागे हैं बेटे की ख़ुशी ना देख पाएं क्यों दादाजी हां बेटा, हमारा बेटा तो अब से 20 साल पहले इस दुनिया को छोड़कर चला गया। बहुत सपने सजाए थे हमनें पर कुछ भी ना रहा शादी के 6 वर्ष बाद ही उसका देहांत हो गया। उसकी निशानी के रूप में विभु और उसकी छोटी बहन एकतारा ही हमारे जीवन में है।
हमारी इकलौती बहू जवानी में विधवा हो गयी थी।
हमें दुख ना हो इसलिए महीनों तक हमारे पास तक नहीं आती।
विभु अपनी मां से इतना प्यार करता है की मां के साथ ही पूरा दिन बताता है या अपने कॉलेज जाता है वह मां को अकेला नहीं छोड़ सकता इसलिए हमें कम समय देता है। बस एकतारा ही ऐसी है जो हम दोनों के साथ हंस खेल लेती है वह भी अब अपने मामा के यहां रहने के लिए
गयी है तो समय नहीं कटता।
लेकिन कर क्या सकते हैं इतना शरीर कमजोर नहीं है जितना मन कमजोर हो रहा है।
दादाजी बोलते जा रहे थें और दादी की आंखों से लगातार आंसू बह रहें थें।
अब विभु भी कमरे में आकर दादी से बोलता है दादी आप क्यों रो रही हो क्या पापा अब आ जाएंगे नहीं ना फिर आप क्यों नहीं समझते हर वक्त रोते रहते हो इसीलिए तो मेरा आपके पास आने का मन नहीं करता फिर मुझे भी दुख होता है।
श्रेयांश अपलक विभु की तरफ देख रहा था और उसके मस्तिष्क में हजारों प्रश्न कौंध रहें थे। हर तीसरे दिन नानी -नाना के साथ सेल्फी लेते तस्वीर पोस्ट करने वाली विभु के घर में रहने वाले दादा-दादी उपेक्षित है। क्या यह बात नाना -नानी को महसूस नहीं होती! विभु की मम्मी को महसूस नहीं होती!
तभी रसोई से जोरदार बर्तन गिरने की आवाज आयी विभु वापस मुड़कर रसोई की तरफ तोड़ा
श्रेयांश दादी के पास बैठ गया और दादी श्रेयांश को बाहों में समेट कर ऐसे रोने लगी जैसे आज उसका अपना बेटा ही उनके हाल-चाल पूछने आया हों।
अब श्रेयाश के मुंह से यकायक ही निकला मैं पुश्तैनी घर और उसकी कहानी अच्छे से जान गया हूं दादा-दादी।
रश्मि किरण










