प्राकृतिक खेती और नवाचार के अभिनव प्रयोग से राजेंद्र अटल ने अपने प्रकृति कुंज में फल और सब्जी की बारहमासी प्रजातियों को विकसित किया

प्राकृतिक खेती और नवाचार के अभिनव प्रयोग से राजेंद्र अटल ने अपने प्रकृति कुंज में फल और सब्जी की बारहमासी प्रजातियों को विकसित किया

प्राकृतिक खेती और नवाचार के अभिनव प्रयोग से राजेंद्र अटल ने अपने प्रकृति कुंज में फल और सब्जी की बारहमासी प्रजातियों को विकसित किया

 

इन पेड़ों की देखभाल की कम जरूरत है और कीटनाशकों का प्रयोग भी आवश्‍यक नहीं

 

(गौरव सिंघल)

सहारनपुर। पश्चिमी उत्तर प्रदेश हरियाणा और पंजाब की तरह कृषि क्षेत्र में उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहा है। हरियाणा हिमाचल और उत्तराखंड की सीमाओं से सटे सहारनपुर जनपद में बड़ी संख्या में प्रगतिशील किसान आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती को आधुनिक तकनीक और साधनों के जरिए जहां उन्नत किस्म की पैदावार ले रहे हैं वहीं उनकी आय भी परंपरागत खेती की तुलना में तीन से चार गुना हो रही है। ऐसे ही एक प्रगतिशील किसान राजेंद्र कुमार अटल दिल्ली रोड़ स्थित पांच एकड़ के अपने कृषि फार्म प्राकृतिक कुंज में नवाचार और प्राकृतिक खेती के समन्वय से आम, सेब, केला, आड़ू आदि फलों की बारहमासी फसल ले रहे हैं। उन्होंने इस संवाददाता को बताया कि उनके यहां केवल पांच फीट ऊंचे आम के ऐसे वृक्ष हैं जो पूरे वर्ष फलों से लदे रहते हैं। उन्होंने बताया कि आम के पेड़ पर बौर, चने जैसे छोटे आम, एक इंच मोटे आम और पूरे आकार के आम एक साथ लटकते हैं जो हर मौसम में फसल देते हैं।

सहारनपुर जनपद पहले से ही आम की बागवानी का प्रमुख केंद्र है। अब राजेंद्र अटल अग्रवाल इन अनोखे प्रयोग की वजह से देशभर में सुर्खियों में हैं। उनके प्राकृतिक कुंज में विकसित बारहमासी आम की प्रजाति का वृक्ष केवल पांच फुट ऊंचा है और एक वर्ष में चार से पांच बार फल देता है। इन आमों का स्वाद बेमिसाल है और उत्पादकता इतनी अधिक है कि किसानों की आय दस गुना तक बढ़ सकती है। इनके वृक्ष कम जगह में ज्यादा फल देते हैं। छोटे किसानों और शहरी बागवानों के लिए यह वरदान जैसा है। इन पेड़ों के प्रतिरोधी होने के कारण कम देखभाल की जरूरत होती है और कीटनाशकों का इस्तेमाल भी नहीं करना पड़ता। ये पेड़ शहरी किचन गार्डन, छतों और छोटी खेती के लिए भी आदर्श है।

दिलचस्प है कि प्रकृति कुंज ने सहारनपुर जैसे मैदानी इलाके में उत्कृष्ट प्रजातियों के रसीले और स्वादिष्ट सेब की खेती को संभव कर दिखाया है। प्राकृतिक कुंज में बड़े स्तर पर सेब की खेती हो रही है। राजेंद्र अटल लाल सेब को सफलतापूर्वक उगाने का सफल प्रयोग किया है। 15 जुलाई के आसपास सेब पककर लाल रंग का हो जाता है। इन दिनों प्रकृति कुंज में लाल सेबों से अच्छादित है। ध्यान रहे पर्वतीय इलाकों हिमाचल और जम्मू कश्मीर का सेब सर्दी के मौसम में आता है और उसको शीतगृहों में रखकर उसका बिना मौसम भी इस्तेमाल होता है लेकिन वह स्वादहीन होने के साथ-साथ ऊंचे दामों पर मिलता है। राजेंद्र अटल ने अपने प्रयोगों से यह साबित कर दिया है कि सहारनपुर के प्रगतिशील किसान उनका अनुसरण करते हैं तो वे यहां भी बड़े पैमाने पर ऊंची क्वालिटी के सेबों की बागवानी बड़े पैमाने पर करके मालामाल हो सकते हैं। राजेंद्र अटल कहते हैं कि अभी तक यह यह माना जाता था कि सहारनपुर की जलवायु सेब की पैदावार के अनुकूल नहीं है। यहां सेब की खेती कैसे हो सकती है। उन्होंने बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों के सेब उत्पादक किसान जब उनके प्रकृति कुंज में पधारे तो इस मौसम में उनके यहां पेड़ों पर सेब लगे देखकर भौचक्के रह गए। पर्वतीय इलाकों की जलवायु ठंडी है। वहां अच्छा सेब दिसंबर-जनवरी में आता है और जल्दी समाप्त हो जाता है।

राजेंद्र अटल ने सहारनपुर की गर्म जलवायु में जहां 45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान रहता है परीक्षण के लिए 40 सेब के पेड़ लगाए। जो जून माह में फसल देने लगे और उनके सेब का स्वाद कश्मीर के सेब से बहुत अच्छा है। इस मौसम में सेब बाजार में नहीं होता या फिर ऊंचे दामों पर मिलता है या फिर कश्मीर का शीतगृहों में रखा सेब आता है जो चार गुणा दामों पर मिलता है जबकि प्रकृति कुंज में सेब की फसल की बहार आई हुई है और इस कुंज में टहलने के दौरान बरबस ही आपकों पेड़ों पर लगे विभिन्न आकार के सुंदर रंगों के सेब आपकों आकर्षित करते दिखेंगे।

प्रकृति कुंज पांच एकड़ में फैला है और इसकी पहचान और ख्याति वनस्पति पार्क के रूप में हो गई है। यहां देशभर के गणमान्य लोगों की रोज आवाजाही रहती है। ऊंचे दर्जे के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद्, शासक-प्रशासक, विद्वान, विचारक, राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। इस वनस्पति पार्क में नवग्रह वृक्ष, 12 राशि वृक्ष, 27 नक्षत्र वृक्ष, 12 तरह की तुलसी, हरी संकरी, ब्रह्म कमल, उलट कमल, रामसर-दीमक रोधी, नशा रोधी-दहीमन, चूहा रोधी- गिरि पुष्प इंशूलिन, तेज पत्र, दालचीनी, पान मिठाई, मक्खन कटोरी, कृष्णावट, सिंदूर का पौधा, कुमकुम, काली हल्दी, सफेद हल्दी, लाल चंदन, सफेद चंदन, सदाबहार अमरूद, आम महोगुनी, सीता, अशोक, पुत्र जीवा, रूद्राक्ष, कृष्णा फल, फैशन फ्रूट, पारस पीपल, फाईक्स पीपल, पूजा करने वाला मिनि केला, लाल गन्ना- पोंडा, सात रंग का गुडहल, खुबानी, आम- पेस्ट अदरख, सौंठ, सफेद शहतूत, कमल, कई रंगों में कुमुदिनी कमल, कृष्णप्रिया वैदयंति मोती जिनकी भगवान श्रीकृष्ण माला पहनते थे आदि दर्शनीय पौधों में शामिल हैं।

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राजेंद्र अटल के साथ इन पंक्तियों के लेखक ने देखा की प्रकृति कुंज में तितलीप्रिय टैनारेड, येलो, वाटर बंबू, लेवेंडर लोहबान, ब्राह्मणी, विजयशाल, पान, खैर आदि के पौधे सभी को लुभाते हैं। इस दर्शनीय पार्क में विभिन्न प्रकार के जीव जंतु मौजूद हैं गाय, घोड़ी, बकरी, खरगोश, मुर्गी, बत्तख, टर्की, मोर, तीतर, कबूतर, बटेर, रंगीन मछलियां हर किसी को लुभाती हैं। हाल ही में सहारनपुर मंडल के कमिश्नर अटल कुमार राय और मां शाकुम्बरी राजकीय विश्वविद्यालय की कुलपति डा. विमला वाई ने इस प्रकृति कुंज का अवलोकन किया और राजेंद्र अटल अग्रवाल से अपनी उत्सुकता शांत की।

भारत के 14 वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता कोविंद ने 28 नवंबर 2022 को प्रकृति कुंज में अपने हाथों से लाल चंदन और पंचमुखी रूद्राक्ष के पौधे रोपित किए थे। इन तीन वर्षों की अवधि में पूरी तरह से स्वस्थ हैं और तेजी से विकसित हो रहे हैं। इस प्रकृति कुंज में प्राकृतिक चिकित्सा की सुविधा भी उपलब्ध है। राजेंद्र अटल अग्रवाल महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि जब सभी तरह के इलाज नाकाम हो जाते हैं तो प्राकृतिक चिकित्सा लोगों के प्राण बचा सकती है और उन्हें स्वस्थ बना सकती है। गुर्दे, जिगर, जोड़ों के दर्द, माइग्रेन, पेट रोग, एक्जिमा, सोरायसिस और त्वचा रोगों में यहां की प्राकृतिक चिकित्सा लाभकारी साबित हुई है। इस प्रकृति कुंज में राजेंद्र अटल ने इस संवाददाता को सहजन (मोरेंगा) नामक दुर्लभ वृक्ष भी दिखाए। जिनकी पत्तियों में 350 पोषक तत्व मौजूद हैं और उससे बनी दवाइयां और पत्तों का सेवन 250 रोगों में लाभकारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकारी आवास में सहजन (मोरेंगा) के कई पौधे लगे हैं। नरेंद्र मोदी इसकी पत्तियों को पराठों में भरकर सेवन करते हैं। राजेंद्र अटल ने बताया कि सहजन (मोरेंगा) पौधे प्राचीन समय में अपने औषधिय गुणों के कारण मंदिरों में लगे होते थे। लेकिन मुगल शासन में ये प्रायः विलुप्त हो गए। 15 वर्ष पूर्व अमेरिका में वनस्पति वैज्ञानिकों द्वारा सहजन अंग्रेजी नाम मोरेंगा पर शोध किए गए तो इसके दुर्लभ गुणों का पता चला। जिससे प्रेरित होकर भारत में इस पर खास ध्यान दिया गया। राजेंद्र अटल के यहां 10 वर्ष से सैकड़ों की संख्या में यह उपयोगी वृक्ष लगे हुए हैं और उसके गुणों की जानकारी सार्वजनिक होने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उसके इस्तेमाल करने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस वृक्ष के पौधारोपण पर विशेष ध्यान दिया और इस बार के वृक्षारोपण में बड़े पैमाने पर सहजन के पौधों का वृक्षारोपण किया गया। स्वयं राजेंद्र अटल द्वारा इसके हजारों पौधों निःशुल्क वितरित किए। प्रकृति कुंज में कृष्णावट वृक्ष या माखन कटोरी वृक्ष और उसका महत्व हर किसी का ध्यान आकर्षित करता हैं। राजेंद्र अटल के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की कहानियों में इस पेड़ का जिक्र मिलता है। यह ऐसा पेड़ है जिसके पत्ते खुद पे खुद दोने या कटोरे का आकार ले लेता है। यह चमत्कारी वृक्ष आज भी इस प्रक़तिकुंज में देखने को मिलता है। इसे कृष्णावट वृक्ष या माखन कटोरी वृक्ष कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण इसके पत्तों में माखन भरकर गोपियों को चटाते थे। यह वृक्ष धार्मिक, पौराणिक और आयुर्वेदिक रूप से खास है। हर ओर धार्मिकता से घिरे सहारनपुर जनपद में आज भी ऐसे प्रमाण मिलते हैं जो द्वापर युग की झलक देते हैं। बताया जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण माखन चुराकर खाते थे तो मां यशोदा की डांट से बचने के लिए माखन को इस वटवृक्ष में छुपा देते थे। इसके पत्तों का प्राकृतिक आकार छोटी कटोरी और कप जैसा होता है। राजेंद्र अटल कहते हैं कृष्णवट वृक्ष के पत्ते प्राकृतिक रूप से उगते हैं लेकिन देखने से लगता है कि किसी उत्कृष्ट शिल्पी ने उन्हें गढ़ा है। यह पौधा यहां उसी पवित्रता और मान्यता के साथ मौजूद है। इसे कृष्णा कप भी कहते हैं और माखन कटोरी के नाम से भी यह जाना जाता है। गोपियां इन कटोरियों में श्रीकृष्ण से मक्खन लेकर अपनी सहेलियों में प्रसाद के रूप में बांटती भी थी।