कैसे विधवा हुई धरती माता?
कैसे विधवा हुई धरती माता?

कैसे विधवा हुई धरती माता?
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, धरती माता (पृथ्वी) के विधवा होने की कहानी द्यौस (आकाश) और इंद्रदेव से जुड़ी है. यह जोड़ी है धरती-आसमान की, यह कहानी है पृथ्वी और द्यौस की। पृथ्वी अर्थात धरती, द्यौस मतलब आसमान। द्यौस पृथ्वी के कई बच्चे है, जैसे अग्नि, उषा, निशा, इंद्र, चंद्र। अग्नि का प्रभाव पृथ्वी के गर्भ में दिखाई पड़ता है, जहां पृथ्वी के गर्भ में आग का अस्तित्व है, उषा मतलब दिन और निशा का अर्थ है रात, तथा इंद्र और चंद्र भी द्यौस-पृथ्वी की संताने है। इस कथा में हम जानेंगे की कैसे इंद्रदेव ने अपने ही पिता द्यौस की हत्या कर के अपनी ही माँ पृथ्वी #(धरती माँ) को विधवा कर दिया। तो एक बार की बात है, जब धरती माँ पाँचवी बार गर्भवती थी। धरती देवी के पेट में इंद्रदेव पल रहे थे। ऐसे ही कुछ दिन बीत गए, अब इंद्रदेव के जन्म के दिन पास आ गए, फिर भी अभी इंद्रदेव जन्म लेने के लिए पूरी तरह से विकसित नहीं थे, ऐसा होने पर भी वह बार-बार धरती के पेट पर अंदर से प्रहार कर रहे थे, इससे धरती माँ को बहुत पीड़ा हो रही थी। तब धरती का आक्रोश सुनकर भगवान द्यौस #(आसमान) चिंतित हुए और उन्होंने धरती के पेट पर हाथ रख दिए और #इंद्र को बाहर निकलने से रोकने लगे, मगर इंद्र की शक्ति के आगे द्यौस पिता की कुछ ना चली। इंद्र ने अंतिम बार जोर देते हुए धरती का पेट फाड दिया और समय से पहले धरती के गर्भ से बाहर निकल आया। और बाहर आते ही वह शिशु अवस्था से युवा अवस्था में परिवर्तित हो गया। इसके बाद वह अपने ही पिता द्यौस से युद्ध करने लगा। भगवान द्यौस ने इंद्र को बहुत समझाया पर वह नहीं माना और वह द्यौसदेव पर प्रहार करता रहा। उनके बीच बहुत दिन युद्ध चला, फिर अंत में भगवान द्यौस की शक्ति क्षीण हो गई, वह इंद्र के विरुद्ध युद्ध में कमज़ोर पड़ने लगे। वह इंद्र को रोकने लगे परंतु द्यौस अब कमज़ोर हो गए थे। इसी अवसर का फायदा उठाकर इंद्र ने पिता द्यौस पर जोरदार प्रहार किया जिससे भगवान द्यौस धराशाही हो गए, उनकी आख़री साँसे शुरू हो गई, धरती देवी उनके पास आई और रोने लगी, ज्वालामुखीयों से निकलकर अग्नि भी उनके पास आया और उषा, निशा भी प्रस्तुत हुई, भगवान #द्यौस को लेटा देखकर सभी की आँखें नम हो गई, बस उस कपटी, पापी इंद्र को छोड़कर, जिसके कारण भगवान द्यौस का यह हाल था। इंद्र को अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं था, वह तो द्यौस को हराकर शैतानी हंसी हंस रहा था। भगवान द्यौस ने आखरी सांस लेते हुए धरती देवी के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और उसके बाद उनका हाथ धरती देवी के माथे से फिसल गया इस से धरती माँ का सिंदूर मिट गया, हां… भगवान द्यौसदेव अब हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया से जा चुके थे, इस तरह धरती आसमान एक दूसरे से हमेशा के लिए दूर हो गए। भगवान द्यौस की मृत्यु के बाद धरती अब सदैव के लिए एक विधवा बनकर रह गई। फिर भी धरती माँ अपने कर्तव्य को नहीं भूली, तब से वह बिना रुके लगातार भगवान #सूर्यदेव की परिक्रमा कर रही है और धरतीवासियों का पोषण भी कर रही हैं।
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