हाड़ मांस की देह मम, तापै ऐसी प्रीत। ऐसी प्रीत जो राममय। हाेत न ताै भवभीत।।
हाड़ मांस की देह मम, तापै ऐसी प्रीत। ऐसी प्रीत जो राममय। हाेत न ताै भवभीत।।

तुलसीदास जी बहुत कामी थे पर अपनी पत्नी की सिर्फ 2 लाइनों सुनकर काम का त्याग करके भगवान की भक्ति में लीन हो गए और इतना पावन पवित्र ग्रन्थ “रामचरितमानस “लिख डाला। जो सारे संसार को प्रकाशित कर रहा है । और हम जैसे है रोज चोपाई सुनते है सत्संग सुनते है फिर भी काम का त्याग नही कर पा रहे, अपने आप को नही बदल पा रहे।। क्यो?
“हाड़ मांस की देह मम, तापै ऐसी प्रीत।
ऐसी प्रीत जो राममय। हाेत न ताै भवभीत।।
पत्नी कहती है – सुनो ये मेरी हाड़ मांस की जो देह है इसमें तुम इतनी प्रीत (प्रेम) कर रहे हो । अगर इतनी प्रीत जो राम से करते तो तुम्हारा उद्धार हो जाता। इस भवसागर से पार हो जाते।।
और इसी दोहे को सुनकर तुलसीदाजी उर्फ रामबोला उसी वक्त वहाँ से चल दिया घर भी नही गया और राम राम रटते हुए । नदी के किनारे वैठकर राम राम रटने लगा।
पत्नी के इस दाेहे का प्रभावकारी असर पति पर हाे गया। वह भी विधि का विधान ही था। जाे हाेने वाला हाेता है वह ताे हाेकर ही रहता है। पति काे पत्नी की बात तीर की भांति लगी। पति काे पत्नी की बात गुरु के उपदेश-सी लगी। रामबाेला उलटे पांव लाैटे और चल पड़े राम भक्ति की खाेज में।
जीवन मे कभी कभी एक शव्द जो दिल को छू जाये -हमारा जीवन बदल देता है। एक शव्द ने ही रामबोला को रामबोला से तुलसीदास बना दिया।
तुलसीदासजी का बचपन का नाम रामबोला था। शिक्षा पूरी करने के बाद ।गाँव मे पधारे । माँ बाप थे नही पहले ही गुजर गए। गाँववालों ने पास के ही गाँव की एक कन्या से रिश्ता तय कर दिया। कुछ दिन बाद विवाह संस्कार हुआ।
और दोनों पति पत्नी साथ साथ रहने लगे। पत्नी से रामबोला का इतना प्रेम हो गया कि पत्नी के विना एक दिन भी दूर नही रह सकते।
कुछ दिन बाद पत्नी का भाई उसे लेने के लिए आया । रामबोला नही चाहता कि पत्नी अपने गाँव जाए। लेकिन जरूरी काम होने की वजह से रामबोला (तुलसीदास )ने पत्नी को अपने गाँव भेज दिया।
रात को क्या होता है रात के 12 बजे रामबोला को पत्नी की बहुत याद आने लगती है । रामबोला ने रात में ही अपनी ससुराल जाने का फैसला कर लिया। और चल दिया। आधी रात को ससुराल पहुँचा।
तो ससुराल में देखा कि सभी लोग सोये हुए थे। दरवाज़ा बन्द था। रामबोला ने घर के के चारो तरफ चक्कर लगाया पर घर मे घुसने का रास्ता नही मिला।
तब उसने देखा कि रस्सी जैसी चीज दीवाल पर लटक रही थी। उसने रस्सी समझकर उसे पकड़कर चढ़ गया । चढ़ने के बाद पता लगा कि साँप था। इतना पत्नी के प्रेम में( काम ) में ध्यान मगन था।
उसने देखा कि पत्नी किधर सो रही है वही पहुच गया तब वो पत्नी को जगाता है । पत्नी तुलसीदास उर्फ रामबोला को देखकर आश्चर्य चकित रह जाती है।और कहती है। इतनी रात को और यहाँ। इतना प्यार में अंधे हो चुके हो । बहुत बाते पत्नी ने रामबोला( तुलसीदासजी) को सुनाई। रामबोला क्या कहे सुनता रहा।
तब एक लाइन। पत्नी ने रामबोला से कही जिसको सुनकर रामबोला । रामबोला से तुलसीदासजी बन गए
वो लाइन है—-
“हाड़ मांस की देह मम, तापै ऐसी प्रीत।
ऐसी प्रीत जो राममय। हाेत न ताै भवभीत।।
पत्नी कहती है – सुनो ये मेरी हाड़ मास की जो देह है इसमें तुम इतनी प्रीत (प्रेम) कर रहे हो । अगर इतनी प्रीत जो राम से करते तो तुम्हारा उद्धार हो जाता। इस भवसागर से पार हो जात
उधर पत्नी काे तब अपने कथन का आभास मिला, जब पति उनसे दूर जा चुके थे, दूर बहुत ही दूर। पत्नी काे चिंता हुई। फिर घर के लाेगाें काे भी पता चला। रामबोला की खाेज हाेने लगी, पर रामबाेला किसी काे न मिले।
रामबाेला प्रयाग पहुंचे और वैष्णव धर्म में दीक्षित हाे गए। उन्हाेंने अनेक तीर्थाें की यात्रा की और बढ़ते ही गए राम भक्ति की ओर।
उधर पत्नी की दशा दिनाेंदिन चिंतनीय हाेती गई। उन्हें अपनी भूल पर दिनाेंदिन पश्चत्ताप हाेने लगा। वह यदा-कदा यह साेचने लगी कि पति देव युवा हैं। संसार का सुख बिलकुल नहीं भाेग सके। हाे सकता है कि किसी प्रेमिका के प्रेम-पाश में पड़ गए हाें। एक दिन उन्हें यह भी पता लगा कि इस समय वह प्रयाग में ही हैं। तब उस बाला ने एक पत्र लिखा और भेजा दिया अपने पति के पास। पत्र में लिखा था :
कटि की खीनी कामिनी रहत सखिन संग साेय।
माेहि कटे कर दुख नहीं, अनत कटे दुख हाेय।।
संत रामबाेला ने अपनी पत्नी का पत्र पाकर तुरंत उत्तर लिखा-
एक कटे श्रीराम संग, बांधि जटा सिर केस।
मैंने चाखा प्रेम रस, पतनी के उपदेश।।
तीर्थाें का चक्कर काटते हुए रामबाेला काशी, अयाेध्या, द्वारका, बद्री नारायण आदि के दर्शन करके संसार के उद्धार के लिए कुछ लिखने लगे। उनकी लेखनी ने लिख दिया एक महा ग्रंथ, संसार सागर से पार उतारने वाला महा ग्रंथ। उसका नाम है ‘श्रीरामचरितमानस’ और वही रामबाेला संत तुलसीदास कहलाए। उनके पिता थे श्री आत्मा राम दुबे। माता थी हुलसी और रामशैल के महात्मा जी थे नरहरिनद जी। काशी के गुरु थे शेष सनातन जी।

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