तेनालीराम अपनी बुद्धि, हास्य और चतुराई के लिए प्रसिद्ध
तेनालीराम अपनी बुद्धि, हास्य और चतुराई के लिए प्रसिद्ध

विजयनगर साम्राज्य में तेनालीराम अपनी बुद्धि, हास्य और चतुराई के लिए प्रसिद्ध था। वह महाराज कृष्णदेव राय का प्रिय दरबारी और सलाहकार था। यद्यपि उसकी बुद्धि अनुपम थी, पर उन दिनों उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं चल रही थी। घरेलू खर्च, कुछ पुराने दायित्व और आय के सीमित साधनों के कारण वह धन की तंगी से जूझ रहा था।
अंततः विवश होकर तेनालीराम को महाराज कृष्णदेव राय से क़र्ज़ लेना पड़ा। महाराज दयालु और उदार स्वभाव के थे। उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के तेनालीराम को क़र्ज़ दे दिया। क़र्ज़ लेते समय तेनालीराम ने महाराज को वचन दिया कि जैसे ही उसकी स्थिति सुधरेगी, वह शीघ्र ही पूरा धन लौटा देगा।
समय बीतता गया। तेनालीराम की आर्थिक दशा पहले से कुछ बेहतर अवश्य हुई, परंतु इतनी नहीं कि वह महाराज का क़र्ज़ एकमुश्त चुका सके। क़र्ज़ का विचार उसे दिन-रात परेशान करने लगा। वह हर समय इसी चिंता में डूबा रहता कि महाराज का धन कैसे लौटाए।
उसके सामने दो ही रास्ते थे। पहला, किसी तरह धन जुटाकर क़र्ज़ चुका दे। दूसरा, किसी उपाय से क़र्ज़ से मुक्ति पा ले। पहला रास्ता कठिन था, जबकि दूसरा उसे सरल प्रतीत हो रहा था। किंतु समस्या यह थी कि वह महाराज से सीधे क़र्ज़ माफ़ करने की बात कैसे कहे।
काफी सोच-विचार के बाद तेनालीराम ने एक योजना बनाई। उसने इस योजना में अपनी पत्नी को भी शामिल किया। योजना के अनुसार एक दिन उसकी पत्नी के माध्यम से महाराज को संदेश भिजवाया गया कि तेनालीराम का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया है और वह कुछ दिनों तक दरबार में उपस्थित नहीं हो पाएगा।
संदेश भेजने के बाद तेनालीराम ने दरबार जाना पूरी तरह बंद कर दिया। कई दिन बीत गए। दरबार में तेनालीराम की अनुपस्थिति महाराज को खटकने लगी। वे चिंतित हो उठे कि कहीं तेनालीराम की बीमारी गंभीर तो नहीं हो गई। अंततः उन्होंने स्वयं उसके घर जाकर हालचाल जानने का निश्चय किया।
एक शाम महाराज तेनालीराम के घर पहुँचे। महाराज को देखते ही तेनालीराम की पत्नी ने उसे संकेत कर दिया। तेनालीराम तुरंत बिस्तर पर जाकर कंबल ओढ़कर लेट गया और बीमार होने का अभिनय करने लगा।
महाराज उसके पास आए और स्नेहपूर्वक बोले, “तेनालीराम, तुम्हारी तबीयत कैसी है?”
तेनालीराम चुप रहा, मानो बोलने की शक्ति भी न बची हो। तभी उसकी पत्नी भावुक स्वर में बोली,
“महाराज! जब से इन्होंने आपसे क़र्ज़ लिया है, तभी से अत्यंत चिंतित रहते हैं। आपका धन लौटाना चाहते हैं, पर असमर्थ हैं। क़र्ज़ का बोझ इनके मन और शरीर दोनों को खाए जा रहा है। उसी चिंता के कारण ये बीमार पड़ गए हैं।”
महाराज को यह सुनकर दया आ गई। उन्होंने स्नेह से कहा,
“अरे तेनालीराम! इतनी छोटी-सी बात के लिए चिंता क्यों करते हो? चलो, मैं तुम्हें इस क़र्ज़ के बोझ से मुक्त करता हूँ। अब चिंता छोड़ो और शीघ्र स्वस्थ हो जाओ।”
यह सुनते ही तेनालीराम ने कंबल एक ओर फेंक दिया और फुर्ती से उठ बैठा। उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसने हाथ जोड़कर कहा,
“आपका बहुत-बहुत धन्यवाद महाराज! आपने तो मुझे नया जीवन दे दिया।”
तेनालीराम को एकदम स्वस्थ देखकर महाराज को बहुत क्रोध आया। वे बोले,
“यह क्या तेनालीराम! तुम तो बिल्कुल स्वस्थ हो। इसका अर्थ है कि तुमने क़र्ज़ माफ़ करवाने के लिए बीमारी का नाटक किया। यह छल है। तुम दंड के पात्र हो।”
तेनालीराम ने विनम्रता से हाथ जोड़ते हुए कहा,
“महाराज! मैंने कोई छल नहीं किया। मैं सचमुच क़र्ज़ के बोझ से बीमार हो गया था। जैसे ही आपने मुझे उस बोझ से मुक्त किया, मेरी बीमारी भी दूर हो गई।”
तेनालीराम की इस चतुराई और भोलेपन से भरी बात सुनकर महाराज निःशब्द रह गए। वे उसकी बुद्धि पर मुस्कुरा उठे और बिना कुछ कहे लौट गए।
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सीख
1. चिंता और मानसिक बोझ मनुष्य को भीतर से बीमार कर देते हैं।
2. बुद्धि और सूझ-बूझ से कठिन से कठिन परिस्थिति को भी सरल बनाया जा सकता है।
3. सच्ची चतुराई वह है, जो बिना किसी का अपमान किए समस्या का समाधान कर दे।

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